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Sunday, November 10, 2013

MAINA KI KAHANI ...KABHI DHOOP, KABHI CHHANV / मैना की कहानी ...कभी धूप, कभी छाँव



मैना की हँसती-बोलती आँखों में पहली बार नमी देख दिल टूट गया , सच!! कुछ पूछने से कहीं रो न पड़े इसलिए सुबह-सुबह आँचल ने कुछ पूछा भी नहीं. दो सालों से काम कर रही है उसके घर में, कभी ऐसा नहीं हुआ इसीलिए आँचल थोड़ी हैरान भी थी. सोचा दोपहर को पूछेगी,तब तक शायद मैना का मन शांत हो जाए.

सुबह से कभी कहानी की किताब, कभी रसोई, इसी तरह दोपहर का वक़्त आया तो घड़ी की ओर देखने लगी. मैना एक साधारण सी कामवाली बाई थी पर इन दो सालों में आँचल के जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुकी थी. रॉकिंग चेयर पे बैठे- बैठे ख़यालों में डूबी आँचल की तंद्रा अचानक कॉलिंग बेल की आवाज़ से टूटी. दरवाज़ा खोलते ही  मैना की आँखों को पढ़ने की कोशिश करने लगी पर कुछ ख़ास समझ न पाई.

निश्चय किया पहले उसे सारा काम निबटाने देगी उसके बाद पूछेगी. पर मैना भी शायद मन हल्का करने का एक मौका खोज रही थी. बर्तन मांजते- मांजते, बिना कोई भूमिका बाँधे , क्रंदित स्वर में बोल पड़ी- "जानती हो दीदी, आज मुझे लगा जैसे बेटी को स्कूल भेजकर मैने ग़लती की है. पढ़ाई- लिखाई सीखकर कितनी अहंकारी हो गयी है. इतना गुरूर की असलियत को नकारने लगी है. आज जिस काम की वजह से वो शिक्षित हो पाई है, समाज में सम्मानजनक स्थान पाने के काबिल बन पाई है, आज उसी काम का उसने अपमान किया है. बर्तन मांजना, कपड़े धोना, उसके लिए अपने स्तर से नीचे गिर जाने जैसा है. मेरे हाथ में कल चोट लगी थी इसीलिये उससे कहा कि मेरी थोड़ी मदद कर दे. मदद तो दूर की बात मेरे साथ उपर आपके घर तक आने से मना कर दिया. बाप के डर से मेरे साथ आ तो गयी मगर कोई भी काम करने से साफ मना कर दिया. कहती है उसने कामवाली बनने के लिए पढ़ाई-लिखाई नहीं की है ".

एक साँस में कहती जा रही थी और फिर रो पड़ी. आँचल हतवाक् थी. मैना कितना सोचती है अपने बच्चों के लिए, कितनी परिश्रमी है. दिन के उजाले से लेकर गोधुलि बेला तक एक मिनट भी सुस्ताये बिना पाँच लोगों के यहाँ काम करती है और उसकी संतान ही इतनी असंवेदनशील !! क्या कहे, समझ नहीं पा रही थी, बस इतना ही बोल पाई- " शांत हो जाओ, कुछ खा लो ".

पढ़ लिखकर दूसरों के घरों में बर्तन मांजना , झाड़ू-पोंछा लगाना शायद तोड़ा मुश्किल ही है. पर मैना की बेटी यह बात अपनी माँ को दूसरे ढंग से समझाती तो अच्छा होता. उसने जिस प्रकार अपनी माँ का अपमान किया वो कतई एक शिक्षित और सुलझे हुए इंसान को शोभा नहीं देता.
मनुष्य कितना भी पढ़ लिख ले, सही मायने में सुशिक्षित वही है जो बुलंदियों को छूने के बाद भी वास्तविकता को नहीं नकारता.....




Maina ki hansti-bolti aankhon mein pahli baar nami dekh dil toot gaya , sach!! Kuch poochne se kahin ro na pade isliye subah subah Anchal ne kuch poocha bhi nahin. Do saalon se kaam kar rahi hai uske ghar mein, kabhi aisa nahin hua isiliye anchal thodi hairan bhi thi. Socha dopahar ko poochegi,tab tak shayad maina ka man shaant ho jaye.

Subah se kabhi kahani ki kitaab, kabhi rasoi, isi tarah dopahar ka waqt aya to ghari ki oar dekhne lagi. Maina ek sadhran si kaamwaali bai thi par in do saalon mein aanchal ke jeevan ka ek aham hissa ban chuki thi. Rocking chair pe baithe- baithe khayalon mein doobi aanchal ki tandra achanak calling bell ki awaaz se tooti. Darwaza kholte hi maina ki ankhon ko padhne ki koshish karne lagi par kuch khaas samajh na payi.

Nishchay kiya pahle use saara kam nibtane degi uske baad poochegi. Par maina bhi shayad man halka karne ka ek mouka khoj rahi thi. Bartan maanjte- maanjte, bina koi bhumika bandhe, krandit swar mein bol padi- "jaanti ho didi, aaj mujhe laga jaise beti ko school bhejkar maine galati ki hai. Padhai- likhai seekhkar kitni ahankaari ho gayi hai. itna guroor ki asliyat ko nakaarne lagi hai.aaj jis kaam ki vajah se woh shikshit ho payi hai, samaaj mein sammanjanak sthan pane ke kaabil ban payi hai, aaj usi kaam ka usne apmaan kiya hai. Bartan maanjna, kapde dhona, uske liye apne star se neeche gir jane jaisa hai. Mere haath mein kal chot lagi thi isikliye usse kaha ki meri thodi madad kar de. madad to door ki baat mere saath upar aapke ghar tak ane se manaa kar diya. Baap ke dar se mere saath aa to gayi magar koi bhi kaam karne se saaf manaa kar diya. Kahti hai usne kaamwaali banne ke liye padhai-likhai nahin ki hai ".

Ek saans mein kahti ja rahi thi aur fir ro padi. Aanchal hatavaak thi. maina kitna sochti hai apne bachchon ke liye, kitni parishrami hai. Din ke ujaale se lekar godhuli bela tak ek minute bhi sustaye bina paach logon ke yahan kaam karti hai aur uski santaan hi itni asamvedansheel!! Kya kahe, samajh nahin paa rahi thi, bas itna hi bol payi- " Shaant ho jao, kuch kha lo ".

Padh likhkar doosron ke gharon mein bartan maanjna , jhadu-poncha lagana shayad thoda mushkil hi hai. Par Maina ki beti yah baat apni maa ko doosre dhang se samjhati to achcha hota. Usne jis prakar apni maa ka apaman kiya woh katai ek shikshit aur suljhe hue insaan ko shobha nahin deta.
Manushya kitna bhi padh likh le, sahi mayne mein sushikshit wahi hai jo bulandiyon ko chhune ke baad bhi vaastavikta ko nahin nakarta........


pic- google

8 comments:

  1. "सादा जीवन उच्च विचार" आज की पीढ़ी के लिए मूल्यहीन है पर जिसके लिए मूल्यवान है वही वास्तविक शिक्षित है !
    नई पोस्ट काम अधुरा है

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    1. जी बिलकुल। टिप्पणी के लिए शुक्रिया

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  2. सुन्दर विचार. अपने मूल से जो स्वयं को विस्थापित कर लेता है वो हमेशा अपूर्ण ही रहता है. हालाँकि जो सच्चे तौर पर शिक्षित होते हैं वो ऐसा नहीं करते.

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    1. प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार निहार जी

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  3. "मनुष्य कितना भी पढ़ लिख ले, सही मायने में सुशिक्षित वही है जो बुलंदियों को छूने के बाद भी वास्तविकता को नहीं नकारता....."

    बिलकुल सही निष्कर्ष।
    मैना जैसे कई उदाहरण हमारे आस-पास ही मौजूद हैं।

    सादर

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  4. हाँ ,बिलकुल सही। शुक्रिया ब्लॉगपोस्ट पढ़ने के लिए

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  5. Bhalo golpo, hochot khete khete porlaam.

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