Dhamaniyon mein bahti
bhavnaon ki tarah,
nashwar jeevan ki
shwas ki tarah,
avadharit tha tumahara aana.
Par tum
uljhe rahe jatil neel ki
parakashtha napne mein.
Dekho,
megh ke chhal se bachkar
chandni bhi chali ayi.
Indradhanush,tum aana bhool gaye ?
Dekho,
dhoop ka ik sunhara tukda
rango ke intzaar mein
abhi bhi baitha hai
chupchap mere sirhane..
धमनियों में बहती
भावनाओं की तरह,
नश्वर जीवन की
श्वास की तरह,
अवधारित था तुम्हारा आना.
पर तुम
उलझे रहे जटिल नील की
पराकाष्ठा नापने में.
देखो,
मेघ के छल से बचकर
चाँदनी भी चली आई.
इंद्रधनुष,तुम आना भूल गये ?
देखो,
धूप का इक सुनहरा टुकड़ा
रंगो के इंतज़ार में
अभी भी बैठा है
चुपचाप मेरे सिरहाने..
PIC -ticktackkirsten.xanga.com
लाजवाब
ReplyDeleteसादर
shukriya Yashwant
Deleteइंद्रधनुष,तुम आना भूल गये ?
ReplyDeleteदेखो,
धूप का इक सुनहरा टुकड़ा
रंगो के इंतज़ार में
अभी भी बैठा है
चुपचाप मेरे सिरहाने..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
abhaar Kalipad ji
Deleteदिल से निकली हुई भावमयी प्यारी रचना !!
ReplyDeletebohat bohat shukriya aapka Ranjana ji
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति..अपर्णा जी!
ReplyDelete~सादर!!!
शुक्रिया अनिता जी
Delete''अपर्णा'' जी यूँ तो आपने सुन्दर ढंग से प्रकृति की छटा बिखेरी है।
ReplyDeleteपर ये पंक्तियाँ बेहद मार्मिक और सत्य है आज के दौर में :
''उलझे रहे जटिल नील की
पराकाष्ठा नापने में.''
हाँ ! आज इंसां भी अपने अभिलाषा की पूर्ति में
सब कुछ भूल उलझा उलझा सा है।
बेहद सुन्दर रचना
आपकी सार्थक टिपण्णी ने कविता के भाव को बहुत सुन्दरता से उकेरा है। धन्यवाद अभिषेक जी
Deleteगहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteआभार सुषमा जी
Deleteवाह ! बहुत ही सुंदर ! लाजवाब अभिव्यक्ति अपर्णा जी ! जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार दीदी। इसी प्रकार अपना स्नेह बनाये रखिये। आपको एवं आपके परिवार जनों को श्री कृष्णा जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
DeleteWah !!! bahut khub
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया रीता जी
DeleteWah kyaa baat hai?
ReplyDeleteVinnie,
आभार आपका विन्नी जी
Deleteधूप ओर नमी के आने पे इन्द्रधनुष आए ये जरूरी नहीं ... शायद उसे प्रेम का इंतज़ार है ...
ReplyDeleteजो जाने कब होगा ...
जी…. इन्द्रधनुष का भी 'दिल'होता है
Deleteअवधारित था तुम्हारा आना.
ReplyDeleteपर तुम
उलझे रहे जटिल नील की
पराकाष्ठा नापने में.
बहुत सुंदर
शुक्रिया इस कविता को पढ़ने के लिए
Deleteवाह , मन के सच्चे भाव , विरह की व्यथा भी और शिकायत भी ।
ReplyDeleteआभार अमित जी
Deleteबहुत सुंदर , प्यारी सी अभिव्यक्ति । बधाई आपको ।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार अन्नपूर्णा जी।
Deletethank you for joining my site Annapurna ji
DeleteBeautiful indeed.... The feel is way more powerful than th words....
ReplyDeleteGlad that you liked this composition Moulshree.thank you for the encouragement.
Deleteसहर्ष आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteAparna ji ..... awesome expression as u have pointed in ur top quote that Its Ethereal mind encapsulated
ReplyDeletein a poetic envelope ......... I really appreciate the line....... //मेघ के छल से बचकर
चाँदनी भी चली आई.
इंद्रधनुष,तुम आना भूल गये / congrts to u for such high words pool
Thank you so much for the kind words Poonam. I am glad that you liked this composition.much appreciated :)
DeleteAsadharan. This is totally uncommon.I am try to join in the deeper line of this lyric.
ReplyDeletedhonyobad.. yes ,'jatil neel', indradhanush' and 'dhoop'could well be called metaphors which highlight the different aspects of our life...
DeleteBeautiful !
ReplyDeletehey thanks a lot Ananya..
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