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Thursday, September 05, 2013

ANJORI, AAJ ANYAMANASKA KYON HO ? / अंजोरी, आज अन्यमनस्क क्यों हो ?



अंजोरी, आज अन्यमनस्क क्यों हो ?

कजराई-सी आँखों में
'रात्रि' की कनीनिका में
समाया है अब्द का अस्तित्व
जो माँग रहा है तुमसे
क्षण भर का साथ
अंजोरी, तुम आज अन्यमनस्क क्यों हो ?

इस पार से जो देखा
अस्पष्ट दाग चाँद का
इतना कुत्सित नहीं, सच.
कुछ ठंडक तुम देती
कुछ उष्णता जीवन से लेती
अंजोरी, तुम आज अन्यमनस्क क्यों हो ?

कुआशा से कुपित
अस्थिर, अबाध्य हृदय
चाहता है पीना दो घूँट
उस पूर्णिमा की कलसी से.
अब तक नहीं लाई तुम अंजुलि भर ?
अंजोरी, तुम आज अन्यमनस्क क्यों हो ?




Anjori aaj anyamanaska kyon ho?

Kajrai si ankhon mein
'Raatri' ki kaninika mein
samaya hai abd ka astitva
jo mang raha hai tumse
kshan bhar ka saath
Anjori, tum aaj anyamanaska kyon ho?

Is paar se jo dekha
aspasht daag chand ka
itna kutsit nahin, sach.
Kuchh thandak tum deti
kuch ushnata jeevan se leti
Anjori, tum aaj anyamanaska kyon ho?

Kuasha se kupit
asthir, abadhya hriday
chahta hai peena do ghoont
us poornima ki kalsi se.
Ab tak nahin layi tum anjuli bhar?
Anjori, tum aaj anyamanaska kyon ho?





Text-Aparna Bose
Pic- thehotroddinromeos.com 

41 comments:

  1. बहुत सुन्दर....चित्र और कविता दोनों!!

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  2. सुंदर रचना !!!
    जानते हुए भी अंजोरी इस प्रश्न का उत्तर दे पाएगी क्या अपर्णा ??

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    Replies
    1. मामी, यही तो सुन्दर बात है कल्पना की। प्रश्न और उत्तर दोनों ही कल्पना के पास होते हैं। बस दिल से निकले ख्यालों की एक उड़ान भरने की देर है

      Delete
  3. कल्पना की उडान और मन के अनमनेपन की अभिव्यक्ति आपकी कविता में है।

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    Replies
    1. जी. समय निकालकर इस कविता को पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया शिंदे जी

      Delete
  4. जय जय
    ''Aparna जी'' सुन्दर प्रस्तुति

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  5. बहत ही सुंदर प्रस्तुति अपर्णा जी , आपको बहुत बधाई ।

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया अन्नपूर्णा जी

      Delete
  6. wahh khubsurat rachna .. anupam .. shubhkamnaye
    इस पार से जो देखा
    अस्पष्ट दाग चाँद का
    इतना कुत्सित नहीं, सच.
    कुछ ठंडक तुम देती
    कुछ उष्णता जीवन से लेती
    अंजोरी, तुम आज अन्यमनस्क क्यों हो ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. सराहना के लिए शुक्रिया सुनीता जी

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  7. बहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी

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  8. बहुत सुन्दर ......

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  9. Replies
    1. Vinnie ji thank u so much ...bas isi tarah mera hausla badhate rahiye

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  10. चाहता है पीना दो घूँट
    उस पूर्णिमा की कलसी से.

    सुंदर रचना

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    Replies
    1. sarahna ke liye bohat bohat shukriya Shorya ji

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  11. आपकी रचनायें मन को बहुत सुकून सा देती हैं ! बहुत सुंदर प्रस्तुति ! अंजोरी के साथ-साथ अपनी अन्यमनस्कता भी सर उठाती सी लगने लगती है ! शुभकामनायें !

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    Replies
    1. आपकी इस सुन्दर टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार साधना जी। आगे भी इसी प्रकार मेरा उत्साहवर्धन कीजियेगा
      साभार

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  12. बेहद खूबसूरत कविता

    सादर

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  13. कुआशा से कुपित
    अस्थिर, अबाध्य हृदय
    चाहता है पीना दो घूँट
    उस पूर्णिमा की कलसी से.
    अब तक नहीं लाई तुम अंजुलि भर ?
    अंजोरी, तुम आज अन्यमनस्क क्यों हो ?

    भावुक और दार्शनिक भाव लिए आत्म मंथन करती सुंदर रचना
    बहुत खूब
    बधाई

    "ज्योति"

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    Replies
    1. सराहना के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ज्योति जी। आगे भी प्रोत्साहन देते रहिएगा
      साभार

      Delete
  14. बहत ही सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  15. बहत ही सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया अशोक जी

      Delete
  16. बहुत ही भावपूर्ण रचना…………………"अब तक नहीं लाई तुम अंजुलि भर ?
    अंजोरी, तुम आज अन्यमनस्क क्यों हो ?" सुंदर प्रस्तुति |

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  17. Replies
    1. शुक्रिया निहार रंजन जी

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  18. लाज़वाब भावमयी अभिव्यक्ति...

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार कैलाश जी

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  19. बहुत खुबसूरत रचना... चांदनी रात की तरफ ढंडक देती हुई ...

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  20. Bahut Sundar. Reminds me of one of the mum's favorite hindi poem.

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    Replies
    1. A very humble thanks Saru...really honoured...

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