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Wednesday, June 19, 2013

PARIKSHA / परीक्षा

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कोयल की कूक आज भी पुरानी  यादों को ताज़ा कर देती है।।याद दिला देती है दसवीं की
, जिसे हम बोर्ड  एक्ज़ाम  कहते थे .... एक ओर कोयल की सुरीली तान ,आम के पेड़ पर खिली खिली सी मंजूरी और दूसरी ओर टेबल पर रखी भिन्न- भिन्न विषयों की किताबें और नोट्स ....पढ़ने  बैठो तो कोई न कोई हॉर्लिक्स और पार्ले - जी बिस्कुट भी थमा जाता .........
( अब हॉर्लिक्स का स्थान ले लिया है कॉफी  ने और परीक्षा तो प्रतिदिन देते हैं ..... फिर चाहे कोयल की कूक हो या कौए की कर्कश पुकार ) ...........

MATRITWA / मातृत्व


PIC-GOOGLE
पिछले महीने जावेद अख्तर जी  ने संसद के एक सत्र के दौरान एक मुद्दा उठाया था मातृत्व के सन्दर्भ में ...उनका एक प्रश्न सचमुच दिल को झकझोर गया ... उन्होंने जो कहा वो कुछ इस प्रकार था ..." कहते हैं माँ के पैरों तले स्वर्ग है ,माँ भगवान का रूप है, तो क्या उस औरत को वो सम्मान या प्यार नहीं मिलना चाहिए जो माँ नहीं बन सकी ? "
निः संदेह विचार करने योग्य .......
विडंबनात्मक बात यह है कि एक ओर  हमारे देश में जहाँ देवियों की पूजा शक्ति या माँ के रूप में की जाती है वहीँ दूसरी ओर कुछ पलों के अंतराल में एक बलात्कार या भ्रूण हत्या का कांड टीवी के परदे पर दिखाई देता है .

जावेद जी ठीक ही तो कहते हैं ...ममता हर स्त्री के भीतर व्याप्त है या यूं कहें वो जन्म लेती है इस गुण के साथ…इसके लिए उसका माँ बनना ज़रूरी नहीं ...सिर्फ ममता ही क्यों, दूसरों के सुख दुःख बांटना ,और परित्याग की भावना ये ऐसे गुण हैं जिनसे उसका स्वाभाव स्वाभाविक या प्राकृतिक रूप से  सुशोभित है ...नहीं तो किसी गोद लिए गए बच्चे पर अपना सर्वस्व न्योछावर करना कैसे संभव होता है एक स्त्री के लिए?
आज अखबार में भी पढ़ा , कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जो निजी कारण  हेतु अविवाहित होते हुए भी मातृत्व का सुख पाने के लिए बच्चा adopt कर रहीं है ...काफी परेशानियों का सामना करना पढता है ऐसे cases में ,पर बिना हार  माने,विचलित हुए बिना अकेले ही बच्चा गोद भी ले रहीं हैं और उनका अच्छे से पालन-पोषण भी कर रहीं है .....
कोई ज़रुरत नहीं है औरत को या 'माँ ' को भगवान् का दर्ज़ा देने की ....इंसान है ,इंसान रहने दो… मान-सम्मान और प्यार ही काफी है ... इस प्रकार ये समाज ,ये संसार निश्चित रूप से  एक मनोरम स्थान बन  जायेगा ........

Monday, June 10, 2013

रिश्ता

रिश्तों की अहम्मियत समझना और उन्हें ईमानदारी से निभाना  आसान नहीं है किसी के लिए भी ...प्यार और विश्वास दोनों बहुत ज़रूरी है ...कभी कभी तो इन दोनों से भी बात नहीं बनती और कारण ढूँढ़ते ढूँढ़ते रिश्ता ही ख़त्म हो जाता है ...और फिर अकेला इंसान हताश बैठा भाग्य को कोसता रहता है. ...ऐसे परिस्थिति को सँभालने के लिए गुरुजनों की विचारक्षमता आवश्यक है बशर्ते वो अपने अहम् को बीच में न लायें और समस्या में उलझे लोग रिश्ते को बचाने के लिए एक नासमझ बच्चे की तरह बड़ों का कहा समझने की कोशिश करें और उस पर अमल करें .........और रही समर्पण की बात ...तो उसके लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए ...दिल बड़ा हो और क्षमा करने की मानसिकता हो तो टूटा हुआ रिश्ता खुद -ब- खुद जुड़ जाता है ....
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Wednesday, May 01, 2013

HAR FIKR KO DHUEIN MEIN UDATA CHALA GAYA .../ हर फ़िक्र को धुँए में उड़ाता चला गया ...




Kolkata mein nayi sarkar ke ate hi niyam banaya gaya ki har traffic signal pe Gurudev Rabindranath Tagore ke geet bajaye jayenge ,public address system ke liye jo loudspeaker lagaye gaye hain unse ...uddeshya ye ki rahgeeron ko tatha thake- hare pareshaan vahanchalakon ko thodi rahat milegi...nek khayal...dhanya ho ye gana select karne wale...dhajjiyaan udake rakh di gurudev ki......barsaat mein garmi ka, chait ke mahine mein baisakhi ka....sawan  mein sharad kal ka....kisi janemane hasti ki mrityu pe harshollas ka gana... .ityadi...
Jab ye bhi sah liya janata ne to ab sarkar kahti hai cigarette pijiye taki tax ke paise se Sharadha group walon ka kuchh bhala ho jaye....Khush hain bande...gharwale mana karein bhi to kaise !! Rajya ke sarvochcha neta ne hami bhari hai ab to... loudspeaker kharab ho gaye hain , aur Guru Rabindranath ji ne bhi cigarette jaise vishay par koi kavita nahin likhi...geet nahi racha ...
Ab to har traffic signal pe 'Hum Dono'  ka ye gana bajna chahiye 'Main zindagi ka saath nibhata chala gaya...Har fikr ko dhuein mein udata chala gaya'...

कोलकाता  में नयी सरकार के आते ही नियम बनाया गया कि हर ट्रैफिक सिग्नल पे गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के गीत बजाये जायेंगे  ...public address system के लिए जो loudspeaker लगाये गए हैं उनसे ....उद्देश्य ये की राहगीरों को तथा थके-हारे परेशान वाहनचालकों को थोड़ी राहत मिलेगी ....नेक ख़याल ....पर धन्य हों ये गाना select करने वाले ......धज्जियां उड़ाके  रख दी गुरुदेव की ...बरसात में गर्मी का ...चैत के महीने में बैसाखी का ....सावन में शरद काल का  ....किसी जानेमाने हस्ती की मृत्यु पे हर्षोल्लास का गाना इत्यादि .......
जब ये भी सह लिया जनता ने तो अब सरकार कहती है सिगरेट पीजिये ताकि टैक्स के पैसे से  Sharadha group वालों का कुछ भला हो जाये ...खुश हैं बन्दे ....घरवाले मना करें भी तो कैसे !! राज्य के सर्वोच्च नेता ने हामी भारी है अब तो ........loudspeaker खराब हो गए हैं , और गुरुदेव ने सिगरेट जैसे विषय पर कोई कविता नहीं लिखी ...कोई गीत नहीं रचा .....
अब तो हर ट्राफिक सिग्नल पे 'हम दोनों ' का  ये गाना बजना चाहिए -
'मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया ...
हर फ़िक्र को धुँए में उड़ाता चला गया '.....

(image courtesy- google)

Wednesday, April 17, 2013

YADON KE RANG.... / यादों के रंग ...........


Maine apne shabdon ko pankh de diye to pahle se hi betaab,ab aise udne lage manoN titli hoN,ya phir koi panchhi….nahin titli. …Chanchal man aur mastishk ki parikalpana ko motiyon ki tarah dhage mein pirona asaan hai kya? Oopar se shabdoN ka yeh awarapan,kabhi indradhanush ke rang chheen late hain to kabhi sooraj ki tapish.aaj to inhone sari seemaon ko tod diya.le aye hain purani yadon ke rang,sahej kar , apne sundar paroN mein……..tewar toh inke aise hain manoN mujh par ehsaan kar rahe hoN.
Kuchh yadon ko maine kagaz par sajakar, uski kashti banakar,baha diya hai nadiya mein…….kashti tum tak pahunch gayi toh kuch pal tum bhi jod dena ....aur kahin majhdhaar kho gayi toh yahi samajh loongi ki awara shabdon ki awara yadein, kashti unka bojh nahin dho payi….


PIC COURTESY GOOGLE

मैंने अपने शब्दों को पंख दे दिए तो पहले से ही बेताब , अब ऐसे उड़ने लगे मानों तितली हों , या फिर कोई पंछी ....नहीं तितली ........चंचल मन और मस्तिष्क की परिकल्पना को मोतियों की तरह धागे में पिरोना आसान है क्या ? ऊपर से शब्दों का यह आवारापन , कभी इन्द्रधनुष के रंग छीन लाते हैं तो कभी सूरज की तपिश . आज तो इन्होंने सारी  सीमाओं को तोड़ दिया। ले आयें हैं पुरानी यादों के रंग ,सहेज कर , अपने सुन्दर परों में .......तेवर तो इनके ऐसे मानों मुझ पर एहसान कर रहे हों .
कुछ यादों को मैंने कागज़ पर सजाकर , उसकी कश्ती बनाकर, बहा दिया है नदिया में .......कश्ती तुम तक पहुँच गयी तो कुछ पल तुम भी जोड़ देना ........और कहीं मझधार खो गयी तो यही समझ लूंगी की आवारा शब्दों की आवारा यादें , कश्ती उनका बोझ नहीं ढो  पाई  ..............

Thursday, March 07, 2013

BASANTI HAWA / बसंती हवा

Chanchal,natkhat, basanti hawa aur suraj ki kirnon ne jab neend se jagaya to yah ehsaas hua ki subah ho chuki hai ...neend se jagte hi itna ujiyara !! sambhavat: us ummeed ki kiran jaisa jo hatasha aur na-ummedgi ke doosre chhor par khadi rahti hai hamare hi intzaar mein ....ujwal , snigdh, ashaapoorn

ast vyast si zindagi ko sametne ke liye aise hi roshni ki to zaroorat hoti hai hamein .....guzre hue din ki thakawat bhulakar naye sfoorti ke saath naye din ki shuruaat asaan bana deti hai prakriti...apne adbhut sparsh se.............

PIC-GOOGLE

चंचल, नटखट ,बसंती हवा और सूरज की किरणों ने जब नींद से जगाया तो यह एहसास हुआ कि सुबह हो चुकी  है .........नींद से जागते ही इतना उजियारा  !! संभवत: उस उम्मीद की किरण जैसा ,जो हताशा और ना-उम्मीदगी के दूसरे छोर पर खड़ी रहती है हमारे ही इंतज़ार में ......उज्वल, स्निग्ध, आशापूर्ण

अस्त व्यस्त सी ज़िन्दगी को समेटने  के लिए ऐसी ही रौशनी की तो  ज़रुरत होती है हमें ...गुज़रे हुए दिन की थकावट भूला  कर नए स्फूर्ति के साथ नए दिन की शुरुआत आसान बना देती है प्रकृति ....अपने अद्भुत स्पर्श से .........

Thursday, December 27, 2012

AAJ BHI SHAYAD ROOH CHEEKH RAHI HOGI...../ आज भी शायद रूह चीख रही होगी....



कितनी बार काटेंगे,और जोड़ेंगे?
वहशियत के निशान कितनी बार मिटाएँगे?
जिस्म हैहो सकता है कल ठीक हो जाए
पर रूह का क्या ,उसे कैसे जोड़ेंगे?

कुछ चीज़ें समेट के रखीं थीं
कौन लाएगा उसकी वह रंगीन टोकरी?
जिसमें सपनों को संजो के रखा था
जिसमे छोटी बड़ी मोतियों की माला थी
आशाओं के आशियाने की चाबी
एक सुनहरे रंग की डिबिया में बंद थी

ढूँढती होगी चौराहे पे अपना सारा सामान
देखो आज भी शायद रूह चीख रही होगी
किसने चुराया ,क्यों चुराया
प्रश्नों के उत्तर ढूँढती होगी
देह की हालत से अंजान रूह
उससे मिलने के लिए तड़प रही होगी

बिस्तर पे पड़ा निर्जीव सा
खोखला और जर्जर बदन
हज़ारों उम्मीदें नम आंखों में,
साँसों को हिम्मत देता उसका अहँकार
आज भी कह गया उसके कानों में
इंसान दरिन्दा बन गया तो क्या
विश्वास रखो सर उठाके जीने में


Kitni baar katenge,aur jodenge?
Wahshiyat ke nishaan kitni baar mitayenge?
Jism hai, ho sakta hai kal theek ho jaye
Par rooh ka kya ,use kaise jodenge?

Kuchh cheezein samet ke rakhi theeN
Kaun layega uski wah rangeen tokri?
Jisme sapno ko sanjo ke rakha tha
Jisme chhoti badi motiyon ki mala thi
AshaaoN ke ashiyane ki chaabi
Ek sunhare rang ki dibiya mein band thi

Dhoondhti hogi chaurahe pe apna sara samaan
Dekho aaj bhi shayad rooh cheekh rahi hogi
Kisne churaya ,kyon churaya
PrashnoN ke uttar dhoondhti hogi
Deh ki haalat se anjaan rooh
Usse milne ke liye tadap rahi hogi

Bistar pe pada nirjeev sa, 
khokhla aur jarjar badan
Hazaron ummidein nam aankhoN mein,
Saanson ko himmat deta uska ahankaar
Aaj bhi kah gaya uske kaanoN mein
“Insaan darinda ban gaya toh kya
Vishwas rakho sar uthake jeene mein”


(निर्भया का निर्जीव शरीर जब मृत्यु के सम्मुखीन खड़ा जीवनदान मांग रहा था तब मन इतना विचलित हो उठा था की इन पंक्तियों में उस पीड़ा को मैंने उकेर डाला। निर्भया या ज्योति या और कोई स्त्री / बिटिया , जिसके साथ भी ऐसा हुआ है , उसके गुनहगार को फांसी के अलावा और कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। )

Sunday, July 29, 2012

BHARATVAASI AAJ BHI APNE HAATHON SE KHATE HAIN / भारतवासी आज भी अपने हाथों से खाते हैं .......

"अतिथि भगवान का रूप होता है , अपनी क्षमतानुसार उसकी आव-भगत करो "

भारत के किस परिवार में ऐसा नहीं सिखाया जाता है ?आज यही सीख हम भारतवासियों के लिए अपमानजनक  बन गयी.आप सबको ज्ञात होगा , अभी पिछले महीने ही अमरीकी महिला ओपराह विनफ्री भारत भ्रमण पर आयीं  थीं . उनका उद्देश्य बुरा नहीं था,आज के भारत की  एक छवि अपने अमरीकी दर्शकों के समक्ष रखने के लिए कुछ तथ्य संग्रह करने ही आयीं थीं .पर उन्होंने एक कुरुचिपूर्ण मंतव्य कर हम देशवासियों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है .यहाँ से अपने देश लौट कर वह उक्ति करती हैं कि "भारतवासी आज भी अपने हाथों से खाते हैं!!"
ज़्यादातर विदेशियों की हमारे देश के बारे में यही धारणा है कि हमारी जनसँख्या का बड़ा हिस्सा गरीब है और बस्तियों में रहता है.हमारे देश में सबसे ज़्यादा भिखारी हैं.आज भी भारत का परिचय देते वक्त वो कहतें हैं कि इस देश में बंदरों का नाच दिखाकर और सांपों को बीन की  धुन पे नचाकर लोग जीविका उपार्जन करते हैं.बात काफी हद तक सच है ,परन्तु भारत का ये सिर्फ एक पहलू है .विशाल समुद्र में बूँद जैसा.हमारे देश में जितने वर्ण ,जाति,समुदाये ,और भाषा के लोग बसते हैं शायद ही और कहीं हो  या यूँ कहूँ है ही नहीं .हर एक प्रान्त में कई धर्म एवं भाषा के लोग एकसाथ रहते हैं.विविधता में एकता यही तो हम भारतवासियों की  खूबी है.परन्तु इन विदेशियों को तो आदत है हमारी हर अच्छी बात को नज़रंदाज़ करने की .
Danny Boyle ने कुछ दो एक वर्ष पहले एक फिल्म बनाई थी , Slumdog Millionaire.उन्होंने भी भारत के उस रूप का चित्रण किया जो गरीब है,पैसे कमाने के लिए बच्चों को जानबूझ कर भिखारी बना देता है,नाबालिग लड़कियों को गन्दी गलियों में व्यवसाय करने के लिए मजबूर करता है ,इत्यादि .एक फिल्म हमेशा जीवन के सच्चाई से प्रेरित होने के बावजूद ,अतिशयोक्ति का सहारा लेकर ही अपनी कहानी दर्शकों तक पहुंचाता है.पर ओपराह ने जो दिखाया वो चलचित्र नहीं था,भारत का चित्रण था.कोई हक नहीं बनता किसीका भी की  हमारी भावनाओं  को ठेस पहुंचाए.उनके आवभगत में पूरा बॉलीवुड शामिल था,बड़े से बड़े उद्योगपति ,पत्रकार ,लेखक प्रत्येक ने अपना सम्मान और प्यार उनको दिया.इस प्रेम का उन्होंने तिरस्कार किया और वो भी इतने बुरे ढंग से .
उनका वक्तव्य मूलतः मुंबई के उस हिस्से पर आधारित था जो १०/१० के कमरे में रहता है.उनको ये नहीं दिखा कि १०/१० के कमरे में रहने वाला परिवार कितना सुखी है.उसके पास टीवी है ,मोबाईल फोन है ,बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं.टीवी पर मैंने जो देखा उसके अनुसार ओपराह एक बारह वर्षीय लड़की से कहती हैं कि उसकी माँ जो कह रही है उसका अर्थनिरूपण(interpretation) करे.माँ से जो प्रश्न वह पूछ रहीं थीं उसमे उनके दांपत्य जीवन से जुड़े प्रश्न भी थे.क्या यही है एक उन्नत देश के नागरिक की  शिक्षा?
मुंबई के चौल में रहने वाले लोग ही समूचे भारतवर्ष का असली परिचय नहीं हैं .और यदि हैं भी तो हमें तो इस बात पे ना तो कोई आपत्ति है और ना ही कोई परेशानी.बच्चा चाहे जैसा भी हो , माँ को सदैव अपना ही बच्चा ज़्यादा प्यारा लगता है.वह खुद चाहे कितना भी डांटे या मारे , यदि कोई दूसरा ऐसा करे तो तुरंत अपने बच्चे का पक्ष लेती है .और प्रत्येक संतान के पास उसकी अपनी माँ ही  विश्व की  सबसे सुंदर स्त्री होती है.हम भारतवासियों के साथ भी ऐसा ही है.हमारी भारत माँ जैसी भी है हमें प्राणों से भी प्यारी है.किसी को यदि हमारी माँ सुंदर नहीं लगती तो ना आये हमारे घर,ग्रहण ना करे हमारे घर का अन्न जल.पर ये कैसा शिष्टाचार,की आदर सत्कार के साथ उन्हें हमने घर में पनाह दी,उन्होंने अपना कार्य सम्पूर्ण किया और अपने देश लौट कर हमारे ही संस्कारों की चर्चा करें !!ये हमारी सहिष्णुता और विनम्रता जैसे गुण ही हैं जो हमने इस बात की इतिश्री कर दी .
हम अपने हाथों से खाते हैं , उन्हें आपत्ति है तो छूरी कांटे से खाएं .हमारे देश में माँ के हाथों से खाना खाने के लिए लोग तरस जाते हैं,माँ एक कौर खिला दे तो दिन अच्छा गुज़रता है ,ऐसा कई लोग मानते हैं.पर हम इन विदेशियों को क्यों समझाएं ये सब.हम भी अगर चाहें तो उनके संस्कारों की आलोचना कर सकते हैं , पर हमारा ज़मीर किसी प्रकार के कुत्सित मंतव्य का अधिकार नहीं देता .जिस देश की  वो नागरिक हैं वहाँ तो एक समय ऐसा भी था जब त्वचा के रंग के आधार पर चरम भेदभाव किया जाता था.ज़ाहिर है उन्होंने खुद और उनके समुदाये के लोगों ने तिरस्कार सहा  हो.हम भारतवासी आज भी ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में गोरों के हाथों अपमानित होते हैं.कई लड़कों का खून तक हुआ है इस वजह से.पर हम इस मुद्दे को लेकर ज़्यादा सोचते ही नहीं हैं.अप्रासंगिक है ,पर कहना ज़रूरी है.हम खुद कितना साफ़ या गोरे रंग के भक्त हैं ये तो विज्ञापनों को देखकर पता चल ही जाता है.आजकल लड़के भी गोरेपन की साज सामग्रियों  का इस्तेमाल करने लगें हैं.विज्ञापन में दिखाते हैं कि गोरी लड़की के लिए नौकरी पाना या योग्य वर मिलना एक सांवली  लड़की से ज़्यादा आसान है.ऐसा मैंने सुना भी है कि अपने अप्रगुण(inefficiency) को गोरे रंग की आड़ में रख कई महिलायें अच्छे से अच्छे ओहदे पर टिकी भी  हुईं हैं .पर इन छोटी छोटी बातों को नज़रंदाज़ कर आगे बढ़ना ही भारत जैसे विशाल देश के लिये शोभायमान है .हमारे संस्कार ,हमारी आदतें हम किसी बाहर वाले के डर से बदल तो नहीं सकते.उन्होंने भारत की ऐसी तस्वीर सम्पूर्ण विश्व को दिखाकर पैसे भी कमा लिए और शोहरत भी हासिल कर ली,पर भारत का जो हिस्सा उनसे मोहब्बत करता था उनके विश्वास को ठेस पहुँचाया है.ईश्वर उन्हें सदबुद्धि दे,वरना हमारे द्वार तो सदैव खुले ही हैं, हम तो फिर उनका ऐसा ही आदर सत्कार करेंगे.हमारे संस्कार हमें यही सिखाते हैं कि दुश्मन यदि खुद चलकर तुम्हारे पास आये तो कम से कम एक गिलास पानी उसके समक्ष ज़रूर रखो .काश उन्होंने कभी हम भारतियों का खाना अपने हाथों से खाकर देखा होता !!


Monday, July 09, 2012

BETIYAAN - PARAYA DHAN !! / बेटियाँ - पराया धन !!

आँसूं बह रहे हैं देखो ,कोशिश किये बिन
शहनाई  और मौसिकी,गुलशन सा सजा  आँगन

बाबुल देखो लोग कह रहे , मैं  हूँ अमानत उनकी


शादी के बाद बेटियाँ पराया धन कहलाती  हैं....क्या कोई जानता  है किसने कहा था ये? एक शरीर एक स्थान  से दूसरे स्थान चला गया इसका मतलब पराया हो गया?आज कितने दिन महीने गुज़र गए हैं ,मैंने अपनी एक अलग सी दुनिया बसा ली है.मेरे इस छोटे से सुसज्जित घोंसले में मैं अपने पति और बेटे के साथ बहुत खुश हूँ.पर जब भी मेरी तबियत खराब होती है मुझे माँ  की याद आती है, गरम तेल का छींटा हाथ पे आकर गिरता है और  कोई नहीं होता जब  आसपास, जो बरनौल  लगा दे ,तब माँ की याद आती है,पिताजी से एक आईसक्रीम माँगती थी तो दो लाकर देते थे.तब कभी मैंने ये सोचा ही नहीं की वो अपने हिस्से की आईसक्रीम मुझे दे रहें हैं .

आज जब ये बातें मुझे समझ में आ गयी हैं तो मैं निरुपाय  हूँ.ऐसा नहीं की मैं किंकर्तव्यविमूढ़  हूँ,मैं उनसे बहुत दूर हूँ.किसीने कमरे से आवाज़ लगायी चाय बनाओ और मैं दौड़ कर  रसोईघर चली गयी ऐसा अब नहीं हो सकता.जिस दिन मेरी विदाई थी विभिन्न प्रकार के रोने के स्वरों में से छन के एक बात मेरे कानों तक पहुंची थी "कल से सुबह की पहली चाय कौन बनायगा?"रोज सुबह जब  चाय -कॉफी बनाती हूँ यह  प्रश्न ज़हन में हलकी सी ठक-ठक  करता  है .

मेरा बेटा जब अपने दोस्तों के साथ खेलता है मुझे बाबुल के घर बिताए बचपन के दिन याद आते है,उनके झगड़ों   में मैं अपना बचपन ढूँढती हूँ.जब दो भाई बहन खेलते हैं या झगड़ते  हैं मुझे अपने भाई बहन याद आते हैं.क्या मैं सचमुच परायी हो गयी हूँ?एक देह के स्थानांतरण से किसी चीज़ से लगाव कम नहीं होता इसका प्रमाण है मेरा हर पल ,हर छोटी सी घटना में स्मृतियों  का उमड़ के आना.
बचपन में किसने गुड्डे गुड़िया  का खेल ना खेला होगा! आज बार्बी से खेलते हैं हम तो रुई और पुरानी  साड़ियों से गुड़िया बनाते थे.उनके कपड़े सिलते थे.जब उनकी शादी होती थी माला में फूल भी खुद ही पिरोते थे .तब शायद समझते नहीं थे,सुई धागा हाथ में लिए माला पिरोने के लिए बेताब हमारा निष्पाप मन असल में उन सुनहरे पलों को ही तो पिरोता था.मैं तो आज भी उन जुही और गेंदे के फूलों की महक महसूस कर सकती हूँ.

विवाहपूर्व जितना भी समय हम स्त्रियाँ अपने मायेके में गुजारती हैं उन अनगिनत पलों का महत्व वास्तव में हम विवाहोपरांत ही समझ पातीं  हैं.माँ बाप किस प्रकार कठिन आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद हमारी मुस्कान  की  खातिर हमारी इच्छाओं  को पूर्ण करते थे ये हम तब समझ पातीं  है जब खुद माँ बनती हैं.
मैं तो आज भी जब कोई कविता लिखती हूँ तो अपनी माँ से ठीक उसी बचपन वाली उत्सुकता से पूछती हूँ की उन्हें कैसी लगी .मैं  तो उनकी नज़रों में बड़ी हुई ही नहीं और ना होना चाहती  हूँ.
हम सबके भीतर  एक बच्चा है,उसे ज़िंदा रखना बहुत ज़रूरी है.अपने बच्चों को भी समझने के लिए हमें कई बार बच्चा बनना पड़ता है,बच्चों के साथ बच्चा बन जाने से उनकी  भावनाओं को समझना आसान हो जाता है .मेरी माँ भी तो ऐसा ही करती थीं ,मुझे समझने की कोशिश,पूर्ण धैर्य के साथ.बचपन में डाँट खाना ,मार खाना  सब स्वाभाविक है अगर सीमा उल्लंघन ना कर जाये तो.लिखते लिखते एक और बात याद आ गयी.मा जब डाँटती थीं तो रूठ कर मैंने उन्हें सौतेली भी कहा था.आज मेरा  बेटा ठीक यही अपशब्द कहता है जब मैं अपना धीरज खो बैठती हूँ.बहुत अचरज होता है!!

मेरे अपरिपक्व मस्तिष्क में इतनी क्षमता नहीं थी कि माँ के गुस्से का कारण समझ सकूं या उसके उत्पत्ति का स्त्रोत ढूँढकर समस्या का निदान कर सकूं.आज बहुत देर हो गयी है. वो अक्सर कहतीं थीं -'जब खुद  माँ बनोगी तब समझोगी माँ बनने की पीड़ा  क्या होती है'.
कहते हैं ना हर अच्छे वस्तु का मूल्य  उसके टूट जाने पर या छिन जाने पर ही ज्ञात होता है.माँ का प्यार भी एक ऐसा अमूल्य खज़ाना है.बेटियाँ कभी परायी नहीं होतीं.वास्तव में विवाह के पश्चात ही माँ और बेटी का रिश्ता मज़बूत  बनता  है.अपने जिस बाबूजी से वो शादी से पूर्व डरी सहमी रहती थी,कन्यादान के वक्त उसी पिता के आँसूं उसे उम्रभर  के लिए एक अदृश्य एवं मज़बूत धागे से बाँध देते  है.
भाई बहिन में अब झगड़े नहीं होते,बल्कि ससुराल में कोई कष्ट दे  तो बहिन की रक्षा करने भाई  दौड़ा चला आता है .

खुशनसीब होती हैं ऐसी बेटियाँ जो अपने संसार धर्म से वक्त निकाल कर ,गुरुजनों की सेवा करने में सक्षम होतीं  हैं.जो सेवा  नहीं कर पातीं वो भी बदनसीब नहीं होतीं.उनकी पूजा अर्चना और दुआ में उन्हें जन्म देने वाले ये दो अतीव सुन्दर मनुष्य अवश्य रहते हैं..........................

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