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Monday, April 21, 2014

CELLOPHANE../ सेलोफेन....



Woh jo ek cellophane jaisa kuchh hai na
hamare tumhare jazbaton ke theek beechobeech
use cheer ke agar koi awaaz
rooh tak pohanch jati toh?
Ya koi mulayam sham use pighla deti..
Yeh zubaan bematlab na haklati
na taish mein
na jazbati hokar....

Woh shayad kuchh harf hain
ya phir guchche hain lafzon ke
aise uljhe hain manon
oon ke unsuljhe lachche hon.
Sawal ek aur sahi jawab bhi ek.
Yeh zubaan bematlab na haklati
na jawab dhoondhne mein
na galat jawabon mein ulajhkar.......




वो जो एक सेलोफेन जैसा कुछ है न
हमारे तुम्हारे जज़्बातों के ठीक बीचोबीच
उसे चीर के अगर कोई आवाज़
रूह तक पहुँच जाती तो?
या कोई मुलायम शाम उसे पिघला देती..
यह ज़ुबान बेमतलब ना हकलाती
न तैश में
न जज़्बाती होकर....

वो शायद कुछ हर्फ़ हैं
या फिर गुच्छे हैं लफ़्ज़ों के
ऐसे उलझे हैं मानों
ऊन के अनसुलझे लच्छे हों
सवाल एक और सही जवाब भी एक
यह ज़ुबान बेमतलब ना हकलाती
न जवाब ढूँढने में
न ग़लत जवाबों में उलझकर.......




PIC COURTESY- GOOGLE

15 comments:

  1. Liked the cellophane metaphor, Aparna and enjoyed your poem.

    Best,
    Nilanjana
    Madly-in-Verse

    ReplyDelete
    Replies
    1. Glad that you liked it Nilanjana..
      thanks and regards :)

      Delete
  2. ये जो सेलफोन जैसा कुछ है न, उसकी आदत है मुझे
    अच्छी आदतोँ को भला छोड़ूँ कैसे?....बेहतरीनB-)

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  3. वाह ! क्या बात है ! आपकी हर रचना मन को छू जाती है !

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    Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया साधना जी

      Delete
  4. सादर आभार कुलदीप जी

    ReplyDelete

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