Woh jo ek cellophane jaisa kuchh hai na
hamare tumhare jazbaton ke theek beechobeech
use cheer ke agar koi awaaz
rooh tak pohanch jati toh?
Ya koi mulayam sham use pighla deti..
Yeh zubaan bematlab na haklati
na taish mein
na jazbati hokar....
Woh shayad kuchh harf hain
ya phir guchche hain lafzon ke
aise uljhe hain manon
oon ke unsuljhe lachche hon.
Sawal ek aur sahi jawab bhi ek.
Yeh zubaan bematlab na haklati
na jawab dhoondhne mein
na galat jawabon mein ulajhkar.......
वो जो एक सेलोफेन जैसा कुछ है न
हमारे तुम्हारे जज़्बातों के ठीक बीचोबीच
उसे चीर के अगर कोई आवाज़
रूह तक पहुँच जाती तो?
या कोई मुलायम शाम उसे पिघला देती..
यह ज़ुबान बेमतलब ना हकलाती
न तैश में
न जज़्बाती होकर....
वो शायद कुछ हर्फ़ हैं
या फिर गुच्छे हैं लफ़्ज़ों के
ऐसे उलझे हैं मानों
ऊन के अनसुलझे लच्छे हों
सवाल एक और सही जवाब भी एक
यह ज़ुबान बेमतलब ना हकलाती
न जवाब ढूँढने में
न ग़लत जवाबों में उलझकर.......
PIC COURTESY- GOOGLE
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteएक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''इंसानियत''
शुक्रिया अभिषेक
Deleteवाह !
ReplyDeleteआभार सुशील जी
Deleteसुन्दर....
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteLiked the cellophane metaphor, Aparna and enjoyed your poem.
ReplyDeleteBest,
Nilanjana
Madly-in-Verse
Glad that you liked it Nilanjana..
Deletethanks and regards :)
saral va ispasht- utam -***
ReplyDeletebohat bohat abhaar apka
Deleteये जो सेलफोन जैसा कुछ है न, उसकी आदत है मुझे
ReplyDeleteअच्छी आदतोँ को भला छोड़ूँ कैसे?....बेहतरीनB-)
shukriya Abhishek
Deleteवाह ! क्या बात है ! आपकी हर रचना मन को छू जाती है !
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया साधना जी
Deleteसादर आभार कुलदीप जी
ReplyDelete