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Tuesday, April 01, 2014

SHIKAYAT... / शिकायत......



Ab shikayaton se hum shikayat karne lage
chand lamhein khud ke liye alag karne lage

Koshish jab bhi ki bahr mein tumhein likhne ki
tum shakhs koi anjaan se lagne lage

Ek patta bhi nahin hilta hai jahan bewajah
zahe naseeb ki tum safhon mein sajne lage

Boondon ke saath ate ho, phir jane kahan chale jate ho
tasavvur mein gum tanha pal ginne lage

Abra jab siyah kar gaya asmaan ko
hum un badalon mein tumhein dhoondne lage

Waadon ki baat karta hai zamana aksar
un wadon kaa kya jo nasoor zakhm ban ne lage


अब शिकायतों से हम शिकायत करने लगे
चंद लम्हें खुद के लिए अलग करने लगे

कोशिश जब भी की बह्र में तुम्हें लिखने की
तुम शख़्स कोई अंजान से लगने लगे

एक पत्ता भी नहीं हिलता है जहाँ बेवजह
ज़हे नसीब की तुम सफ़ों में सजने लगे

बूँदों के साथ आते हो, फिर जाने कहाँ चले जाते हो
तसव्वुर में गुम तन्हा पल गिनने लगे

अब्र जब सियाह कर गया आसमाँ को
हम उन बादलों में तुम्हें ढूँढ़ने लगे

वादों की बात करता है ज़माना अक्सर
उन वादों का क्या जो नासूर ज़ख्म बनने लगे


16 comments:

  1. Replies
    1. शुक्रिया मीना जी

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  2. Replies
    1. शुक्रगुज़ार हूँ अभिषेक

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  3. बगुत खूब. सुंदर रचना .

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    Replies
    1. दिल से आभार राकेश जी

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  4. अब्र जब सियाह कर गया आसमाँ को
    हम उन बादलों में तुम्हें ढूँढ़ने लगे... bahut badhiya ji

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    Replies
    1. प्रोत्साहन का बहुत बहुत शुक्रिया उपासना जी

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  5. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार कैलाश जी

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