Jab ghere vyakulta aur chinta
pranon mein ahoratra asthirta
tab jo haath thapki dete hain
wo prem ke hi to hote hain
Jab lakshya lage durlabh
dagar ho suraj se uttapt
tab jo haath chhalon ko sahlate hain
wo prem ke hi to hote hain
Jab dukh ka abhra bane atithi
vash mein na ho paristhiti
tab jo haath deepmala sajate hain
wo prem ke hi to hote hain
Jab koi shool cheer de chitt ko
chetna shoonya mein nihit ho
tab jo haath kavita likhte hain
wo prem ke hi to hote hain
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जब घेरे व्याकुलता और चिंता
प्राणों में अहोरात्र अस्थिरता
तब जो हाथ थपकी देते हैं
वो प्रेम के ही तो होते हैं
जब लक्ष्य लगे दुर्लभ
डगर हो सूरज से उत्तप्त
तब जो हाथ छालों को सहलाते हैं
वो प्रेम के ही तो होते हैं
जब दुःख का अभ्र बने अतिथि
वश में न हो परिस्थिति
तब जो हाथ दीपमाला सजाते हैं
वो प्रेम के ही तो होते हैं
जब कोई शूल चीर दे चित्त को
चेतना शून्य में निहित हो
तब जो हाथ कविता लिखते हैं
वो प्रेम के ही तो होते हैं
जब कोई शूल चीर दे चित्त को
ReplyDeleteचेतना शून्य में निहित हो....मेरे शब्द-भाव तो वाष्पिभूत हो गये..
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा दो कमेन्ट ऑप्शन से ...
जब उर अंतर हो आकुल ,
ReplyDeleteनयन बहें हो व्याकुल
तब जो हाथ अश्रु पोंछते हैं
वो प्रेम के ही तो होते हैं !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति अपर्णा ! God bless you.
साधना जी क्षमा चाहती हूँ। आपका यह कमेँट आज ही देखा। इसी प्रकार अपना स्नेह बनायें रखें। आभार।
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