KHIRKI kholi to hawa ka ek jhonka aya,
galon ko sahalakar rooh shaant kar gaya
barish dhoondhti ankhon ko,dhoop ka dhakka laga
door ban rahe aashiyane mein,shramikon ka jhund dikha
shole baras rahe the,sooraj jal raha tha
paseene se bheega mazdoor,eenton ko jod raha tha
door baithi biwi,patthar tod rahi thi
sochti hogi abodana kab naseeb hoga
bilakhta hua bachcha ret ki dher par
maa ki god ka intezaar kar raha tha
unhone to shayad ise naseeb man liya hai
mere jaisa khudgarz ishwar ko kos raha tha
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खिड़की खोली तो हवा का एक झोंका आया,
गालों को सहलाकर रूह शांत कर गया
बारिश ढूँढती आँखों को,धूप का धक्का लगा
दूर बन रहे आशियाने में,श्रमिकों का झुंड दिखा
शोले बरस रहे थे,सूरज जल रहा था
पसीने से भिगा मज़दूर,ईंटों को जोड़ रहा था
दूर बैठी बीवी,पत्थर तोड़ रही थी
सोचती होगी आबोदना कब नसीब होगा
बिलखता हुआ बच्चा रेत की ढेर पर
माँ की गोद का इंतज़ार कर रहा था
उन्होंने तो शायद इसे नसीब मान लिया है
मेरे जैसा खुदगर्ज़ ईश्वर को कोस रहा था
नसीब अपना अपना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शनिवार 03 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुंदर रचना
ReplyDeleteमनभावन अंदाज़ में ख़ूबसूरत एहसासात का ज़िक्र किया।
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