2012 में लिखी पंक्तियां आज भी इतनी प्रासंगिक होंगी कौन जानता था। हाथरस, बलरामपुर, राजस्थान, और कई अन्य जगहों पर हो रहीं नृशंस घटनाएं मनुष्यजाति के माथे पे कलंक है। भारत की इन मासूम बेटियों को न्याय मिले यही प्रार्थना है।
AAJ BHI SHAYAD ROOH CHEEKH RAHI HOGI...../ आज भी शायद रूह चीख रही होगी....
कितनी बार काटेंगे,और जोड़ेंगे?
वहशियत के निशान कितनी बार मिटाएँगे?
जिस्म है, हो सकता है कल ठीक हो जाए
पर रूह का क्या ,उसे कैसे जोड़ेंगे?
कुछ चीज़ें समेट के रखीं थीं
कौन लाएगा उसकी वह रंगीन टोकरी?
जिसमें सपनों को संजो के रखा था
जिसमे छोटी बड़ी मोतियों की माला थी
आशाओं के आशियाने की चाबी
एक सुनहरे रंग की डिबिया में बंद थी
ढूँढती होगी चौराहे पे अपना सारा सामान
देखो आज भी शायद रूह चीख रही होगी
किसने चुराया ,क्यों चुराया
प्रश्नों के उत्तर ढूँढती होगी
देह की हालत से अंजान रूह
उससे मिलने के लिए तड़प रही होगी
बिस्तर पे पड़ा निर्जीव सा,
खोखला और जर्जर बदन
हज़ारों उम्मीदें नम आंखों में,
साँसों को हिम्मत देता उसका अहँकार
आज भी कह गया उसके कानों में
“इंसान दरिन्दा बन गया तो क्या
विश्वास रखो सर उठाके जीने में”
Kitni baar katenge,aur jodenge?
Wahshiyat ke nishaan kitni baar mitayenge?
Jism hai, ho sakta hai kal theek ho jaye
Par rooh ka kya ,use kaise jodenge?
Kuchh cheezein samet ke rakhi theeN
Kaun layega uski wah rangeen tokri?
Jisme sapno ko sanjo ke rakha tha
Jisme chhoti badi motiyon ki mala thi
AshaaoN ke ashiyane ki chaabi
Ek sunhare rang ki dibiya mein band thi
Dhoondhti hogi chaurahe pe apna sara samaan
Dekho aaj bhi shayad rooh cheekh rahi hogi
Kisne churaya ,kyon churaya
PrashnoN ke uttar dhoondhti hogi
Deh ki haalat se anjaan rooh
Usse milne ke liye tadap rahi hogi
Bistar pe pada nirjeev sa,
khokhla aur jarjar badan
Hazaron ummidein nam aankhoN mein,
Saanson ko himmat deta uska ahankaar
Aaj bhi kah gaya uske kaanoN mein
“Insaan darinda ban gaya toh kya
Vishwas rakho sar uthake jeene mein”