Hai na
Bilkul zinda
Saans leta hua
Mera bachpan
Zahan mein, dil mein
Har saans ke saath
Dhadakta hua
Sundar sa bachpan...
Hai na
Ek bachpan aur bhi
Chai bechta hua
Gari saaf karta hua
Bartan maanjta hua
Bheekh mangta hua
Chori karta hua
Bandook chalata hua
Khud ko bechta hua....
Par
Saans leta hua
Dhadakta hua
Bilkul mere aur
Tumhare bachpan ki tarah.....
है न
बिलकुल ज़िंदा
सांस लेता हुआ
मेरा बचपन
ज़हन में, दिल में
हर साँस के साथ
धड़कता हुआ
सुन्दर सा बचपन।
है न
एक बचपन और भी
चाय बेचता हुआ
गाड़ी साफ़ करता हुआ
बर्तन माँजता हुआ
भीख माँगता हुआ
चोरी करता हुआ
बन्दूक चलाता हुआ
खुद को बेचता हुआ....
पर
साँस लेता हुआ
धड़कता हुआ
बिलकुल मेरे और
तुम्हारे बचपन की तरह....
#14thNovember
मर्मस्पर्शी कविता अपर्णा जी।
ReplyDeleteमेरी पोस्ट का लिंक :
http://rakeshkirachanay.blogspot.in/
Very nice
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