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Thursday, December 27, 2012

AAJ BHI SHAYAD ROOH CHEEKH RAHI HOGI...../ आज भी शायद रूह चीख रही होगी....



कितनी बार काटेंगे,और जोड़ेंगे?
वहशियत के निशान कितनी बार मिटाएँगे?
जिस्म हैहो सकता है कल ठीक हो जाए
पर रूह का क्या ,उसे कैसे जोड़ेंगे?

कुछ चीज़ें समेट के रखीं थीं
कौन लाएगा उसकी वह रंगीन टोकरी?
जिसमें सपनों को संजो के रखा था
जिसमे छोटी बड़ी मोतियों की माला थी
आशाओं के आशियाने की चाबी
एक सुनहरे रंग की डिबिया में बंद थी

ढूँढती होगी चौराहे पे अपना सारा सामान
देखो आज भी शायद रूह चीख रही होगी
किसने चुराया ,क्यों चुराया
प्रश्नों के उत्तर ढूँढती होगी
देह की हालत से अंजान रूह
उससे मिलने के लिए तड़प रही होगी

बिस्तर पे पड़ा निर्जीव सा
खोखला और जर्जर बदन
हज़ारों उम्मीदें नम आंखों में,
साँसों को हिम्मत देता उसका अहँकार
आज भी कह गया उसके कानों में
इंसान दरिन्दा बन गया तो क्या
विश्वास रखो सर उठाके जीने में


Kitni baar katenge,aur jodenge?
Wahshiyat ke nishaan kitni baar mitayenge?
Jism hai, ho sakta hai kal theek ho jaye
Par rooh ka kya ,use kaise jodenge?

Kuchh cheezein samet ke rakhi theeN
Kaun layega uski wah rangeen tokri?
Jisme sapno ko sanjo ke rakha tha
Jisme chhoti badi motiyon ki mala thi
AshaaoN ke ashiyane ki chaabi
Ek sunhare rang ki dibiya mein band thi

Dhoondhti hogi chaurahe pe apna sara samaan
Dekho aaj bhi shayad rooh cheekh rahi hogi
Kisne churaya ,kyon churaya
PrashnoN ke uttar dhoondhti hogi
Deh ki haalat se anjaan rooh
Usse milne ke liye tadap rahi hogi

Bistar pe pada nirjeev sa, 
khokhla aur jarjar badan
Hazaron ummidein nam aankhoN mein,
Saanson ko himmat deta uska ahankaar
Aaj bhi kah gaya uske kaanoN mein
“Insaan darinda ban gaya toh kya
Vishwas rakho sar uthake jeene mein”


(निर्भया का निर्जीव शरीर जब मृत्यु के सम्मुखीन खड़ा जीवनदान मांग रहा था तब मन इतना विचलित हो उठा था की इन पंक्तियों में उस पीड़ा को मैंने उकेर डाला। निर्भया या ज्योति या और कोई स्त्री / बिटिया , जिसके साथ भी ऐसा हुआ है , उसके गुनहगार को फांसी के अलावा और कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। )

8 comments:

  1. अद्भुत ...सकारात्मक और आशावादी रचना

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  2. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  3. बिस्तर पे पड़ा निर्जीव सा, खोखला बदन
    उम्मीद तैर रही है आँखों में
    साँसों को हिम्मत देता उसका अहँकार
    आज भी कह गया उसके कानों में
    “इंसान दरिन्दा बन गया तो क्या
    विश्वास रखो सर उठाके जीने में”

    बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति

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  4. इस कविता की प्रशंसा करके आप सभी ने मुझे जो प्रोत्साहन दिया है मैं उसके लिए आभारी हूँ

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  5. आशाओं के आशियाने की चाबी
    एक सुनहरे रंग की डिबिया में बंद थी-----
    जीवन के आशावादी अंश को दर्शाती रचना
    गहन अनुभूति
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  6. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी ...आपका ब्लॉग ज़रूर visit करूँगी ...

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  7. "Patto ka hai jism janam bhig jaane do..." , Lovely thoughts Aparna. Hugs!!

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  8. i love this song...thank you for reading my posts and posting such lovely comments.they make my day and motivate me.. much love and hugs.stay blessed

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