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Tuesday, September 15, 2020

AURAT HOON, TAKATWAR BHI HOON/ औरत हूँ, ताकतवर भी हूँ

 

औरत हूँ, ताकतवर भी हूँ


जाने कहाँ से आ जाती है

इतनी ताकत जब

जली कटी रोटियों और तरकारी में

जली कटी बातें मिलाकर खा जाती हूँ

प्याज़ और पीड़ा के आँसूं

आँचल के कोने से पोंछ डालती हूँ


मेरे हिस्से का आसमान

मेरे हिस्से की चाँदनी

मेरी खीर की कटोरी

जब कोई और ले जाये

और मैं चुप …..क्योंकि


औरत हूँ, ताकतवर भी हूँ


जाने कहाँ से आ जाती है

इतनी ताकत जब

तुलसी तले दिया जलाते वक्त

बचपन वाली शाम याद आ जाये

और पत्तों के बीच से झांकता हुआ

पूर्णमासी का चाँद

कोई अपना सा लगने लगे

और आँखों से एक आँसूं ना छलके


मेरे हिस्से की बारिश

मेरे हिस्से की सोंधी खुशबू

मेरे हिस्से का इंद्रधनुष

जब कोई और ले जाये

और मैं चुप…. क्योंकि


औरत हूँ, ताकतवर भी हूँ


जाने कहाँ से आ जाती है

इतनी ताकत जब

बीस हड्डियों के टूटने का दर्द

“माँ” सुनने के लिए सह जाती हूँ

भूख प्यास जलन अकेलापन 

सब मीठी यादों में डुबो देती हूँ

'दहलीज़ें बदल गयी हैं

तू बेटी से औरत बन गयी है'

अंतर्मन को यही लोरी सुनाती हूँ


औरत हूँ, ताकतवर भी हूँ...

Aparna Bose

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका 🙏🏻

      Delete
  2. बहुत सुन्दर

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  3. बहुत ही सुंदर सराहना से परे।
    सादर

    ReplyDelete
  4. सराहना के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हूं अनीता जी। Regards 🙏🏻

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  5. बेहद भावपूर्ण और खूबसूरत अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका आभार मीना जी। 🙏🏻

      Delete

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