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कोयल की कूक आज भी पुरानी यादों को ताज़ा कर देती है।।याद दिला देती है दसवीं की
, जिसे हम बोर्ड एक्ज़ाम कहते थे .... एक ओर कोयल की सुरीली तान ,आम के पेड़ पर खिली खिली सी मंजूरी और दूसरी ओर टेबल पर रखी भिन्न- भिन्न विषयों की किताबें और नोट्स ....पढ़ने बैठो तो कोई न कोई हॉर्लिक्स और पार्ले - जी बिस्कुट भी थमा जाता .........
( अब हॉर्लिक्स का स्थान ले लिया है कॉफी ने और परीक्षा तो प्रतिदिन देते हैं ..... फिर चाहे कोयल की कूक हो या कौए की कर्कश पुकार ) ...........
right ..very right
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