Us din
aisa kyun laga ki
jate jate kuchh raaz
apne saath liye ja rahe ho,
kuchh ehsaas dil ke kone mein
chhupakar le ja rahe ho....
Stambhit
ek nirvaak agantuk main,
mook darshak ki tarah,
tumhare manoram roop ko niharti
kyun nahin samajh payi
tumhare tilasm ko?
karsaazi ko?
karsaazi ko?
Achanak
sindoori nabh ke kone se
ardh-chandra ne kivad khola.
Samaksh paya pranay nivedan karta
satrangi indradhanush.
Na boondein,na megh, phir bhi tum?
Maine
anchal mein baandh tumhe,
muskurate ansuon ko samet liya.
Zahan mein kiya sadaa ke liye chitrit
us godhuli bela ka soundarya
aur anginat ankahe shabd,
jo ban gaye aajivan ke sangi...
Jante ho,
toot gaya tumhara tilasm
bhram mein uljhe mere khayal,
tandra ke jaal se nikalkar,
ab syahi mein doob,
likhna chahte hain,
ek poorn kavita....
उस दिन
ऐसा क्यूँ लगा कि
जाते जाते कुछ राज़
अपने साथ लिए जा रहे हो,
कुछ एहसास दिल के कोने में
छुपाकर ले जा रहे हो....
स्तंभित
एक निर्वाक आगंतुक, मैं
मूक दर्शक की तरह
तुम्हारे मनोरम रूप को निहारती
क्यूँ नहीं समझ पाई
तुम्हारे तिलस्म को?
कारसाज़ी को?
कारसाज़ी को?
अचानक
सिंदूरी नभ के कोने से,
अर्ध-चंद्र ने किवाड़ खोला,और
समक्ष पाया प्रणय निवेदन करता
सतरंगी इंद्रधनुष.
ना बूँदें,ना मेघ, फिर भी तुम?
मैने
आँचल में बाँध तुम्हें,
मुस्कुराते आँसुओं को समेट लिया.
ज़हन में किया सदा के लिए चित्रित
उस गोधुलि बेला का सौंदर्य
और अनगिनत अनकहे शब्द
जो बन गये आजीवन के संगी ...
जानते हो,
टूट गया तुम्हारा तिलस्म,
भ्रम में उलझे मेरे ख़याल,
तंद्रा के जाल से निकलकर
अब स्याही में डूब,
लिखना चाहते हैं,
एक पूर्ण कविता...
(Pic courtesy google)
behtareen... wah..
ReplyDeleteshukriya Mukesh ji
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
thank you Yashwant ji
ReplyDeleteलाज़वाब अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहौसला अफज़ाई का शुक्रिया कैलाशजी।
Deleteआपने वाह क्या सुन्दर जज़्बातों से आगाज़ किया। वाह … वाह
ReplyDeleteमूक दर्शक की तरह
तुम्हारे मनोरम रूप को निहारती
क्यूँ नहीं समझ पाई
तुम्हारे तिलस्म को, कारसाज़ी को?
…………………….नज़रें अक्सर प्रेम में भावुक हो जाती हैं, और इतनी भावुकता में दृष्टि दोष होना स्वभाविक है। सुन्दर और उत्कृष्ट शब्दों का संयोजन।
अर्ध-चंद्र ने किवाड़ खोला,और
समक्ष पाया प्रणय निवेदन करता
सतरंगी इंद्रधनुष
ना बूँदें,ना मेघ, फिर भी तुम !
…………………… आअह्ह्ह्ह्ह लाज़वाब प्रकृति की छटा को दर्शा कर आपने मार्मिकता के शब्द गढ़े, बहुत बहुत बधाई।
टूट गया तुम्हारा तिलस्म
भ्रम में उलझे मेरे ख़याल
तंद्रा के जाल से निकलकर
अब स्याही में डूब
लिखना चाहते हैं
एक पूर्ण कविता
………………………अक्सर क़लम दर्द और तज़ुर्बात आने पे ही चलते हैं, और जब ये उभरती हैं, तो एक से एक नाय़ाब ग़ज़ल और कविताओं का आगाज़ होता है।
आपकी लेखनी में दिन ब दिन निखार आए। बहुत बहुत शुभकामनाएँ
सादर
बेहद खूबसूरत विश्लेषण। इस रचना की तह तक पहुँचने की आपकी कोशिश वाकई काबिले तारीफ है। बहुत बहुत आभार अभिषेक जी। सम्मानित
Deleteसादर
Deleteसादर
DeleteVah kyaa baata hai?
ReplyDeleteVinnie
Vinnie ji apki tippaniyan bohat protsahan deti hain ...tahe dil se abhaar
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteBOHAT BOHAT ABHAAR TUSHAR JI
Deleteलाजवाब रचना .... खो गयी इनमे ... बधाई शुभकामनाये
ReplyDeleteअचानक
सिंदूरी नभ के कोने से
अर्ध-चंद्र ने किवाड़ खोला,और
समक्ष पाया प्रणय निवेदन करता
सतरंगी इंद्रधनुष
ना बूँदें,ना मेघ, फिर भी तुम?
SARAHNA KE LIYE DIL SE SHUKRIYA SUNITA JI
Deleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteBOHAT BOHAT DHANYAVAD
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 दिसंबर 2015 को में शामिल किया गया है।
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
शानदार रचना...
ReplyDeletesundar bhav utne hi sundar shabdon mein vyakt kiya hai apne.
ReplyDeletesundar bhav utne hi sundar shabdon mein vyakt kiya hai apne.
ReplyDeleteआप सबका बहुत बहुत धन्यवाद
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