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Monday, June 03, 2013

TILASM....THE MAGICAL SPELL.... / तिलस्म ......



Us din
aisa kyun laga ki
jate jate kuchh raaz
apne saath liye ja rahe ho,
kuchh ehsaas dil ke kone mein
chhupakar le ja rahe ho....

Stambhit
ek nirvaak agantuk main,
mook darshak ki tarah,
tumhare manoram roop ko niharti
kyun nahin samajh payi 
tumhare tilasm ko?
karsaazi ko?

Achanak
sindoori nabh ke kone se
ardh-chandra ne kivad khola.
Samaksh paya pranay nivedan karta
satrangi indradhanush.
Na boondein,na megh, phir bhi tum?

Maine
anchal mein baandh tumhe,
muskurate ansuon ko samet liya.
Zahan mein kiya sadaa ke liye chitrit
us godhuli bela ka soundarya
aur anginat ankahe shabd,
jo ban gaye aajivan ke sangi...

Jante ho,
toot gaya tumhara tilasm
bhram mein uljhe mere khayal,
tandra ke jaal se nikalkar,
ab syahi mein doob,
likhna chahte hain,
ek poorn kavita....

उस दिन
ऐसा क्यूँ लगा कि 
जाते जाते कुछ राज़
अपने साथ लिए जा रहे हो,
कुछ एहसास दिल के कोने में
छुपाकर ले जा रहे हो....

स्तंभित 
एक निर्वाक आगंतुक, मैं
मूक दर्शक की तरह
तुम्हारे मनोरम रूप को निहारती
क्यूँ नहीं समझ पाई 
तुम्हारे तिलस्म को?
कारसाज़ी को?

अचानक 
सिंदूरी नभ के कोने से,
अर्ध-चंद्र ने किवाड़ खोला,और 
समक्ष पाया प्रणय निवेदन करता
सतरंगी इंद्रधनुष.
ना बूँदें,ना मेघ, फिर भी तुम?

मैने
आँचल में बाँध तुम्हें,
मुस्कुराते आँसुओं को समेट लिया.
ज़हन में किया सदा के लिए चित्रित
उस गोधुलि बेला का सौंदर्य
और अनगिनत अनकहे शब्द
जो बन गये आजीवन के संगी ...

जानते हो,
टूट गया तुम्हारा तिलस्म,
भ्रम में उलझे मेरे ख़याल,
तंद्रा के जाल से निकलकर
अब स्याही में डूब,
लिखना चाहते हैं,
एक पूर्ण कविता...

(Pic courtesy google)




23 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  2. लाज़वाब अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हौसला अफज़ाई का शुक्रिया कैलाशजी।

      Delete
  3. आपने वाह क्या सुन्दर जज़्बातों से आगाज़ किया। वाह … वाह

    मूक दर्शक की तरह
    तुम्हारे मनोरम रूप को निहारती
    क्यूँ नहीं समझ पाई
    तुम्हारे तिलस्म को, कारसाज़ी को?
    …………………….नज़रें अक्सर प्रेम में भावुक हो जाती हैं, और इतनी भावुकता में दृष्टि दोष होना स्वभाविक है। सुन्दर और उत्कृष्ट शब्दों का संयोजन।

    अर्ध-चंद्र ने किवाड़ खोला,और
    समक्ष पाया प्रणय निवेदन करता
    सतरंगी इंद्रधनुष
    ना बूँदें,ना मेघ, फिर भी तुम !
    …………………… आअह्ह्ह्ह्ह लाज़वाब प्रकृति की छटा को दर्शा कर आपने मार्मिकता के शब्द गढ़े, बहुत बहुत बधाई।

    टूट गया तुम्हारा तिलस्म
    भ्रम में उलझे मेरे ख़याल
    तंद्रा के जाल से निकलकर
    अब स्याही में डूब
    लिखना चाहते हैं
    एक पूर्ण कविता
    ………………………अक्सर क़लम दर्द और तज़ुर्बात आने पे ही चलते हैं, और जब ये उभरती हैं, तो एक से एक नाय़ाब ग़ज़ल और कविताओं का आगाज़ होता है।
    आपकी लेखनी में दिन ब दिन निखार आए। बहुत बहुत शुभकामनाएँ
    सादर

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    Replies
    1. बेहद खूबसूरत विश्लेषण। इस रचना की तह तक पहुँचने की आपकी कोशिश वाकई काबिले तारीफ है। बहुत बहुत आभार अभिषेक जी। सम्मानित

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  4. Replies
    1. Vinnie ji apki tippaniyan bohat protsahan deti hain ...tahe dil se abhaar

      Delete
  5. लाजवाब रचना .... खो गयी इनमे ... बधाई शुभकामनाये
    अचानक
    सिंदूरी नभ के कोने से
    अर्ध-चंद्र ने किवाड़ खोला,और
    समक्ष पाया प्रणय निवेदन करता
    सतरंगी इंद्रधनुष
    ना बूँदें,ना मेघ, फिर भी तुम?

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  7. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 दिसंबर 2015 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

    ReplyDelete
  8. sundar bhav utne hi sundar shabdon mein vyakt kiya hai apne.

    ReplyDelete
  9. sundar bhav utne hi sundar shabdon mein vyakt kiya hai apne.

    ReplyDelete
  10. आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete

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