Thursday, June 06, 2013

YAYAVAR ( NOMAD ) / यायावर



Yadon ne karvatein badliN toh zahan mein silwatein padh gayi

यादों ने करवटें बदलीं तो ज़हन में सिलवटें पड़ गयीं


Har kadhwe ehsaas ko meetha mere khayalon ne hi banaya hai,
tapish ki chubhan ko khatm boondoN ki khushbu ne hi kiya hai

'Coffee' ke saath harfon ka rishta hi kuchh anokha  hai
(tapish-heat of the sun , harf -letter , anokha -unique)

हर कड़वे  एहसास को मीठा मेरे ख़यालों  ने ही बनाया है,
तपिश की चुभन को  ख़त्म बूंदों की खुशबू ने ही किया है

'Coffee' के साथ हर्फों का रिश्ता ही कुछ अनोखा  है


Yayavar si fitrat ho gayi hai khayalon ki
mushkilein badh jati hain jab tum unme hote ho ..........
(Yayavar- Itinerant, Nomad...Fitrat - Nature )

यायावर सी फ़ितरत हो गयी है ख़यालों की
मुश्किलें बढ़ जाती हैं जब तुम उनमे होते हो ..........

Gam is baat ka nahin ki kisi din chale jana hai
fikra is baat ki hai ki tum yaad rakhoge ki nahin...........

Hum to rooh ka libaas odh kar bhi khaak se apna dil le jayenge
(rooh -soul , libaas -attire,garb.... khaak - ash )

ग़म  इस बात का नहीं की किसी दिन चले जाना है
फ़िक्र  इस बात की है कि तुम याद रखोगे की नहीं........

हम तो रूह का लिबास ओढ़  कर भी ख़ाक से अपना दिल ले जाएँगे

Ek guzarish dil se zabaan tak ane ko betaab hai
chalo aaj dil ko phir thoda bahla liya jaye

एक गुज़ारिश दिल से ज़बान तक आने को बेताब है
चलो आज दिल को फिर थोड़ा बहला लिया जाए

Aisa kyun lagta hai ki yahin kahin aas-paas ho
aisa kyun lagta hai ki waqt thahar gaya hai...........

ऐसा क्यूँ लगता है की यहीं कहीं आस-पास हो
ऐसा क्यूँ लगता है की वक़्त ठहर गया है...........


Tum thakte nahin ho kitaab likhte likhte
Hum thak jate hain panne palatte palatte

तुम थकते नहीं हो किताब लिखते लिखते
हम थक जाते है पन्ने पलटते पलटते

Kadhwahat na hoti to chashni ka mazaa nahin ataa,
dard na hota to mohabbat bemaani ho jaati

Waise nazm aur sher to 'Uski' marzi se hi mukammal hote hain
(bemaani -meaningless , marzi - consent , mukammal -complete ,consummate)

कड़वाहट ना होती तो चाशनी का मज़ा नहीं आता
दर्द न होता तो मोहब्बत बेमानी हो जाती

वैसे नज़्म और शेर तो 'उसकी' मर्ज़ी से ही मुकम्मल होते हैं


8 comments:

  1. 'ऐसा क्यूँ लगता है की यहीं कहीं आस-पास हो
    ऐसा क्यूँ लगता है की वक़्त ठहर गया है.......'
    अपना पास होने का एहसास और उस एहसास से वक्त ठहरने की कल्पना सुंदर रही।

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया आपका शिंदे जी

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  3. वाह बहुत खूब

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  4. बहुत ही खूब ... त्रिवेनियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं अपने अंदाज़ से ही ...
    गहरे एहसास लिए हैं सभी ...

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  5. शुक्रगुज़ार हूँ दिगंबर जी

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