Saturday, September 08, 2012

MAIN KYON NAHIN TUMHARE JAISI / मैं क्यों नहीं तुम्हारे जैसी ...........

Athkheliyan leti hui, befikri mein doobi hui
pathreele raston se guzarti hui si
kabhi shaant, kabhi kruddh, kabhi prabal bhi
itrai hui ya phir patli dhaar si
na koi shikayat, na kabhi kuchh bolna
'Nadi' main kyon nahin tumhare jaisi

Vishalkaye, vishalchitta, na koi prachhadhan
swabhav se data aur ankhein vinat-si
hanste hue sahna rituon ke waar ko
ho chahe wah bhayankar ya fir mridul-si
na koi shikayat, na kabhi kuchh bolna
'Parvat' main kyon nahin tumhare jaisi

Prakar anek hain, dharm kewal ek hi
din sadaiv ek-se, tatha raatein ek-si
prakriti ke prem aur tadan ka bhagi
kartavyaparayan, bhari ho dalein ya patraviheen-si
na koi shikayat, na kabhi kuchh bolna
'Vriksh' main kyon nahin tumhare jaisi
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अठखेलियाँ लेती हुई, बेफिक्री में डूबी हुई
पथरीले रास्तों से गुज़रती हुई-सी
कभी शांत, कभी क्रुद्ध, कभी प्रबल भी
इतराई हुई या फिर पतली धार-सी
ना कोई शिकायत, ना कभी कुछ बोलना
'नदी' मैं क्यों नहीं तुम्हारे जैसी

विशालकाय, विशालचित्त, ना कोई प्रच्छादन
स्वभाव से दाता और आँखें विनत-सी
हँसते हुए सहना ऋतुओं के वार को
हों चाहे वह भयंकर या फिर मृदुल-सी
ना कोई शिकायत, ना कभी कुछ बोलना
'पर्वत' मैं क्यों नहीं तुम्हारे जैसी

प्रकार अनेक हैं, धर्म केवल एक ही
दिन सदैव एक-से, तथा रातें एक-सी
प्रकृति के प्रेम और ताड़न  का भागी
कर्तव्यपरायण, भरी हो डालें या पत्रविहीन-सी
ना कोई शिकायत, ना कभी कुछ बोलना
'वृक्ष' मैं क्यों नहीं तुम्हारे जैसी

1 comment:

  1. सुन्दर मनोभावों को बिना लाग लपेट के सरलता / शुद्धता से व्यक्त करती हुई निर्मल रचना सुखद अनुभूति के साथ
    बहुत ही सुन्दर ..भाव /अभिव्यक्ति /विचार /दिशा / रचना ...अतिसुन्दर
    अभिनन्दन अपर्णा जी .

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