Friday, September 14, 2012

BOHAT FARK HAI / बहुत फर्क है

Bohat fark hai......

Ek ore chakachaundh
doosri ore lalten
badi badi sadkein
nayi nayi imaratein
imaraton ke peechhe dekho
jaandaron ki ek basti hai
bohat fark hai.................

Gadiyan hazaaron doudti
din raat in raston pe
paidal bhi kuchh chal pade
is shor machati bheed mein
nanhe-nanhe haath dekho
gadiyon ko ponchhte hain
bohat fark hai ...............

Kuchh tukde mile to theek varna
pani se pet bhar lete hain
kapde nahin tan pe
zindagi utran pe guzaar lete hain
kuchh aise bhi log hain yahan
jinke zameer kapdon se saste hain
bohat fark hai.................
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बहुत फर्क है......

एक ओर चकाचौंध
दूसरी ओर लालटेन
बड़ी बड़ी सड़कें
नई नई इमारतें
इमारतों के पीछे देखो
जानदारों की एक बस्ती है
बहुत फर्क है.................

गाड़ियाँ हज़ारों दौड़तीं
दिन रात इन रस्तों पे
पैदल भी कुछ चल पड़े
इस शोर मचाती भीड़ में
नन्हें-नन्हें हाथ देखो
गाड़ियों को पोंछ्ते हैं
बहुत फर्क है ...............

कुछ टुकड़े मिले तो ठीक वरना
पानी से पेट भर लेते हैं
कपड़े नहीं तन पे
ज़िंदगी उतरन पे गुज़ार लेते हैं
कुछ ऐसे भी लोग हैं यहाँ
जिनके ज़मीर कपड़ों से सस्ते हैं
बहुत फर्क है.................

1 comment:

  1. आपके शब्दों ने विचलित कर दिया अपर्णा जी ...मै निःशब्द हूँ इस मानव-भेद रेखांकन से ....इस मायने में आपकी रचना सार्थक है कि वह आपकी अनुभूतियों को संप्रेषित करती है मन में ...गहराई से, और पाठक को सोचने के लिए उत्प्रेरित भी करती है ....समाज में परिवर्तन का आशावाद कायम रहेगा जब तक आपसे मार्गदर्शक दीप प्रज्वलित हैं राहों में .

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