Sunday, July 29, 2012

BHARATVAASI AAJ BHI APNE HAATHON SE KHATE HAIN / भारतवासी आज भी अपने हाथों से खाते हैं .......

"अतिथि भगवान का रूप होता है , अपनी क्षमतानुसार उसकी आव-भगत करो "

भारत के किस परिवार में ऐसा नहीं सिखाया जाता है ?आज यही सीख हम भारतवासियों के लिए अपमानजनक  बन गयी.आप सबको ज्ञात होगा , अभी पिछले महीने ही अमरीकी महिला ओपराह विनफ्री भारत भ्रमण पर आयीं  थीं . उनका उद्देश्य बुरा नहीं था,आज के भारत की  एक छवि अपने अमरीकी दर्शकों के समक्ष रखने के लिए कुछ तथ्य संग्रह करने ही आयीं थीं .पर उन्होंने एक कुरुचिपूर्ण मंतव्य कर हम देशवासियों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है .यहाँ से अपने देश लौट कर वह उक्ति करती हैं कि "भारतवासी आज भी अपने हाथों से खाते हैं!!"
ज़्यादातर विदेशियों की हमारे देश के बारे में यही धारणा है कि हमारी जनसँख्या का बड़ा हिस्सा गरीब है और बस्तियों में रहता है.हमारे देश में सबसे ज़्यादा भिखारी हैं.आज भी भारत का परिचय देते वक्त वो कहतें हैं कि इस देश में बंदरों का नाच दिखाकर और सांपों को बीन की  धुन पे नचाकर लोग जीविका उपार्जन करते हैं.बात काफी हद तक सच है ,परन्तु भारत का ये सिर्फ एक पहलू है .विशाल समुद्र में बूँद जैसा.हमारे देश में जितने वर्ण ,जाति,समुदाये ,और भाषा के लोग बसते हैं शायद ही और कहीं हो  या यूँ कहूँ है ही नहीं .हर एक प्रान्त में कई धर्म एवं भाषा के लोग एकसाथ रहते हैं.विविधता में एकता यही तो हम भारतवासियों की  खूबी है.परन्तु इन विदेशियों को तो आदत है हमारी हर अच्छी बात को नज़रंदाज़ करने की .
Danny Boyle ने कुछ दो एक वर्ष पहले एक फिल्म बनाई थी , Slumdog Millionaire.उन्होंने भी भारत के उस रूप का चित्रण किया जो गरीब है,पैसे कमाने के लिए बच्चों को जानबूझ कर भिखारी बना देता है,नाबालिग लड़कियों को गन्दी गलियों में व्यवसाय करने के लिए मजबूर करता है ,इत्यादि .एक फिल्म हमेशा जीवन के सच्चाई से प्रेरित होने के बावजूद ,अतिशयोक्ति का सहारा लेकर ही अपनी कहानी दर्शकों तक पहुंचाता है.पर ओपराह ने जो दिखाया वो चलचित्र नहीं था,भारत का चित्रण था.कोई हक नहीं बनता किसीका भी की  हमारी भावनाओं  को ठेस पहुंचाए.उनके आवभगत में पूरा बॉलीवुड शामिल था,बड़े से बड़े उद्योगपति ,पत्रकार ,लेखक प्रत्येक ने अपना सम्मान और प्यार उनको दिया.इस प्रेम का उन्होंने तिरस्कार किया और वो भी इतने बुरे ढंग से .
उनका वक्तव्य मूलतः मुंबई के उस हिस्से पर आधारित था जो १०/१० के कमरे में रहता है.उनको ये नहीं दिखा कि १०/१० के कमरे में रहने वाला परिवार कितना सुखी है.उसके पास टीवी है ,मोबाईल फोन है ,बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं.टीवी पर मैंने जो देखा उसके अनुसार ओपराह एक बारह वर्षीय लड़की से कहती हैं कि उसकी माँ जो कह रही है उसका अर्थनिरूपण(interpretation) करे.माँ से जो प्रश्न वह पूछ रहीं थीं उसमे उनके दांपत्य जीवन से जुड़े प्रश्न भी थे.क्या यही है एक उन्नत देश के नागरिक की  शिक्षा?
मुंबई के चौल में रहने वाले लोग ही समूचे भारतवर्ष का असली परिचय नहीं हैं .और यदि हैं भी तो हमें तो इस बात पे ना तो कोई आपत्ति है और ना ही कोई परेशानी.बच्चा चाहे जैसा भी हो , माँ को सदैव अपना ही बच्चा ज़्यादा प्यारा लगता है.वह खुद चाहे कितना भी डांटे या मारे , यदि कोई दूसरा ऐसा करे तो तुरंत अपने बच्चे का पक्ष लेती है .और प्रत्येक संतान के पास उसकी अपनी माँ ही  विश्व की  सबसे सुंदर स्त्री होती है.हम भारतवासियों के साथ भी ऐसा ही है.हमारी भारत माँ जैसी भी है हमें प्राणों से भी प्यारी है.किसी को यदि हमारी माँ सुंदर नहीं लगती तो ना आये हमारे घर,ग्रहण ना करे हमारे घर का अन्न जल.पर ये कैसा शिष्टाचार,की आदर सत्कार के साथ उन्हें हमने घर में पनाह दी,उन्होंने अपना कार्य सम्पूर्ण किया और अपने देश लौट कर हमारे ही संस्कारों की चर्चा करें !!ये हमारी सहिष्णुता और विनम्रता जैसे गुण ही हैं जो हमने इस बात की इतिश्री कर दी .
हम अपने हाथों से खाते हैं , उन्हें आपत्ति है तो छूरी कांटे से खाएं .हमारे देश में माँ के हाथों से खाना खाने के लिए लोग तरस जाते हैं,माँ एक कौर खिला दे तो दिन अच्छा गुज़रता है ,ऐसा कई लोग मानते हैं.पर हम इन विदेशियों को क्यों समझाएं ये सब.हम भी अगर चाहें तो उनके संस्कारों की आलोचना कर सकते हैं , पर हमारा ज़मीर किसी प्रकार के कुत्सित मंतव्य का अधिकार नहीं देता .जिस देश की  वो नागरिक हैं वहाँ तो एक समय ऐसा भी था जब त्वचा के रंग के आधार पर चरम भेदभाव किया जाता था.ज़ाहिर है उन्होंने खुद और उनके समुदाये के लोगों ने तिरस्कार सहा  हो.हम भारतवासी आज भी ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में गोरों के हाथों अपमानित होते हैं.कई लड़कों का खून तक हुआ है इस वजह से.पर हम इस मुद्दे को लेकर ज़्यादा सोचते ही नहीं हैं.अप्रासंगिक है ,पर कहना ज़रूरी है.हम खुद कितना साफ़ या गोरे रंग के भक्त हैं ये तो विज्ञापनों को देखकर पता चल ही जाता है.आजकल लड़के भी गोरेपन की साज सामग्रियों  का इस्तेमाल करने लगें हैं.विज्ञापन में दिखाते हैं कि गोरी लड़की के लिए नौकरी पाना या योग्य वर मिलना एक सांवली  लड़की से ज़्यादा आसान है.ऐसा मैंने सुना भी है कि अपने अप्रगुण(inefficiency) को गोरे रंग की आड़ में रख कई महिलायें अच्छे से अच्छे ओहदे पर टिकी भी  हुईं हैं .पर इन छोटी छोटी बातों को नज़रंदाज़ कर आगे बढ़ना ही भारत जैसे विशाल देश के लिये शोभायमान है .हमारे संस्कार ,हमारी आदतें हम किसी बाहर वाले के डर से बदल तो नहीं सकते.उन्होंने भारत की ऐसी तस्वीर सम्पूर्ण विश्व को दिखाकर पैसे भी कमा लिए और शोहरत भी हासिल कर ली,पर भारत का जो हिस्सा उनसे मोहब्बत करता था उनके विश्वास को ठेस पहुँचाया है.ईश्वर उन्हें सदबुद्धि दे,वरना हमारे द्वार तो सदैव खुले ही हैं, हम तो फिर उनका ऐसा ही आदर सत्कार करेंगे.हमारे संस्कार हमें यही सिखाते हैं कि दुश्मन यदि खुद चलकर तुम्हारे पास आये तो कम से कम एक गिलास पानी उसके समक्ष ज़रूर रखो .काश उन्होंने कभी हम भारतियों का खाना अपने हाथों से खाकर देखा होता !!


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